कभी सोचा है कि ये ढलती शाम इतनी खूबसूरत क्यों होती हैं? क्यों ये इतनी उम्मीदें दे जाती है अगली सुबह होने का...दूर कहीं एक टिमटिमाता तारा अपनी ओर देखने को मजबूर करता हैं?ठंडी हवा क्यों सारी उलझनों को अपने साथ ले जाती हैं? क्यों ये डूबता सूरज हजारों उम्मीदों को पंख दे जाता हैं? अपने आशियाने की ओर लौटते हर परिंदे एहसास करते है कि वापस लौटना कितना जरूरी है, ठहरे पानी की लहरों में डूबते सूरज की लालिमा ऐसे घुल रही होती हैं जैसे दो ज़िन्दगी एक होने की आस में वर्षों इंतेज़ार के बाद मिलते हैं।हजारों कहानियां कह के जाती है ये ढलती शाम और अपने पीछे छोड़ जाती हैं उम्मीदों का कारवां, जो सुबह के इंतेज़ार में जगाए रखती है।धीरे -धीरे ये आसमान और बादल सूरज की किरणो को अपने आगोश मे छुपा लेते हैं, दो चार तिमटिमे तारे धीरे धीरे अनगिनत होने लगते हैं घर के खिड़कियों से आती सूरज की रौशनी की जहग रोशदान के दिये ले लेते हैं। और फिर कहीं बादलों के बीच से झांकते छिपते दिखाई देते हैं अपने अंतर्मन और इंतज़ार के युद्ध को जगाये रखने वाला चाँद। हजारों सवाल जिसका न तो कोई जवाब हैं और न कोई अंत हैं। फिर भी एक आस की शायद कोई जवाब मिल जाएं। कभी सोचा है उस चाँद के पास इतने सवालों के जवाब कहाँ से आयेगा जो खुद एक सवाल है। वो खुद कैसे किसी को उम्मीद देगा जो खुद किसी और ग्रह और पिंडों की वजह से प्रकशित होता है! एक निःशब्द रात और मन में ही बार-बार दोहराते वही सवाल! ख्याल उसी ढलती शाम का और इंतज़ार अगली सुबह का। अंतर्मन एक ऐसा रणभूमि बन जाता हैं जहाँ आपके स्वयं के सवाल ही आपके शत्रु होते हैं जो आपको हराना चाहता है और आप अपने आप से ही जितना चाहते हो। घर लौटते उस परिंदे की तरह जो अपने मोह माया के संसार में वापस लौटता, उस तिमटिमे तारे की तरह जो निःस्वार्थ आपको देखता है, वो शाम को खिले मधुकामिनी की तरह जो अपने सुगंध से मन बहलता है, वो ठंडी बहती हवा जो ये नही देखती की आपकी उलझने कितनी ज्यादा है या आप कौन है? आपसे भेद भाव किये बिना ही आपको सुकून दे जाती हैं। वो ठहरे पानी की लहरों में खुद को समा रही सूरज की किरणें कह जाती हैं की अंत भी खूबसूरत होती है। मगर इंतज़ार उससे भी ज्यादा खूबसूरत होता है पर उसके लिए लड़ना पड़ता है अपने आप से अपने अंतर्मन से। उसके बाद आती हैं "एक सुबह" जहाँ वही सूरज की पहली किरण अपनी पहली मुस्कान मुस्कुराता है उसी ठहरे पानी की लहरों के बाहों मे । वही परिंदे अपने खाने की तलाश मे फिर से निकलता है। वही ठंडी हवा फिर से जीने का हौसला देते हैं। अब कभी अगर ढलते शाम को देख के डर लगे तो उस डर के साथ सुबह तक का इंतज़ार करना । जो ये लेकर जायेगा उससे खूबसूरत लौटाने आयेगा। बस अपने अंतर्मन की रणभूमि मे हार नहीं मानना कभी। ये ढलती शामें और "एक सुबह" सिर्फ कुछ पहर का वक़्त नही जिंदगी का हिस्सा है। अगर ये कुछ सवाल देके जा रहे हैं तो यकीनंन जवाब भी लेकर आयेगा।